गाजर घास जागरुकता सप्ताह 16-22 अगस्त 2019 गाजर घास से मनुष्यों एवं पशुओं को होते है सांस एवं त्वचा रोगः जानकारी ही बचाव है

Fri, 23 August 2019

पार्थेनियम जिसे देश के विभिन्न भागो में अलग-अलग नामों जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, चटक चांदनी, गंधी बूटी से जाना जाता है, मूल रुप से उत्तरी अमेरिका महाद्वीप का पौधा है। यह पौधा दुनिया के मुख्य दस सबसे अधिक नुकसान पहुँचाने वाले खरपतवारों में से एक है। पार्थेनियम से मनुष्यों में त्वचा संबंधी रोग, एक्जिमा, एलर्जी, बुखार, दमा आदि जैसी बीमारियां हो जाती है। पशुओं के लिए भी यह पौधा अत्यधिक हानिकारक है। इसके हानिकारक प्रभावों को देखते हुए भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में गाजर घास जागरुकता सप्ताह दिनांक 16-22 अगस्त 2019 तक मनाया जा रहा है जिसमें गाजर घास से नियंत्रण संबंधी उपायों पर विस्तृत कार्चक्रम चलाया जा रहा है। इसी के अन्तर्गत आज दिनांक 23.08.2019 को संस्थान प्रक्षेत्र पर एक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस अवसर पर संस्थान के निदेशक डॉ. जगदीश सिंह द्वारा गाजर घास के बारे में लोगों को जागरुक किया गया और यह बताया गया कि 1955 में यह पौधा पुणे में पहली बार देखा गया था। निदेशक द्वारा यह भी बताया गया कि यह पौधा ताप तथा प्रकाश के प्रति असंवेदनशील होने की वजह से किसी भी मौसम में पुष्पित हो सकता है और फूल आने के बाद विषमतम् परिस्थितियों में भी बीज बना देता है। एक पौधे से 10,000 से 15,000 बीज पैदा हो जाते है और वर्ष-प्रतिवर्ष अपनी इन्हीं क्षमताओं के कारण पूरे देश में तेजी से फैल रहा है। उन्होंने इस पौधे को फूल आने से पहले ही नियंत्रित करने पर बल दिया। संस्थान में कार्य कर रहे खरपतवार विशेषज्ञ डॉ. राघवेन्द्र सिंह ने इस पौधे के जैविकीय, रासायनिक एवं एकीकृत्त प्रबंधन के उपायों के बारे में बताया। इस अवसर पर संस्थान के सभी विभागों के विभागाध्यक्ष, वैज्ञानिक एवं कर्मचारी उपस्थित थे।