भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) के स्वर्ण जयंती के अवसर पर तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी (20-22 दिसम्बर 2022) का आयोजन

Mon, 26 December 2022

भा.कृ.अनु.प-भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) के स्वर्ण जयंती के उपलक्ष्य में तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का उद्धाटन मुख्य अतिथि माननीय श्री सूर्य प्रताप शाही, मंत्री, कृषि, कृषि शिक्षा एवं कृषि अनुसंधान, उत्तर प्रदेश सरकार की उपस्थिति में हुआ। मंत्री महोदय ने उद्बोधन में सब्जियों तथा फलों का देश खाद्य एवं पोषण सुरक्षा का महत्व बताया। संस्थान के शोध परिणामों के उपयोग से उत्तर प्रदेश सब्जी उत्पादन में देश का प्रथम स्थान पर है। सब्जियों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते हुये विगत वर्षों में सब्जियों का 11 हजार करोड़ रूपये का निर्यात किया गया। अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) विगत 50 वर्षों में 500 से अधिक किस्में विकसित की गयी है। एपीडा के सहयोग से एफ.पी.ओ. के माध्यम से करोना काल में 3500 मैट्रिक टन सब्जियों का निर्यात किया गया। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 4 मैगों पैक हाउस का निर्माण किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा जैविक जीवनाशी के विकास के लिए संस्थान को 1.5 करोड़ रूपये की सहायता दी गयी है। मंत्री महोदय ने ऐसे किसानों की जिनकी फसलें कीट एवं बीमारियों के संक्रमण के कारण फसल अवधि पूर्ण होने के पहले नुकसान हो जाता है इस संकट के समाधान के लिये संस्थान द्वारा शोध के लिये सुझाव दिया। उत्तर प्रदेश में कुल 89 कृषि विज्ञान केन्द्र के माध्यम से किसानों को प्रसंस्करण, मूल्य संवर्धन, मशरूम उत्पादन का प्रशिक्षण देकर उनकी आय में वृद्धि करने का प्रयास किया जा रहा है। इस दौरान उन्होंने कहा कि भारत एवं उत्तर प्रदेश सरकार के सहयोग से एग्रो टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिये कृषि की नवीनतम किस्मों एवं तकनीकों को चयनित गाँवों में प्रसार किया जा रहा है। इस अवसर पर विशिष्ठ अतिथि डा. पंजाब सिंह, कुलाघिपति, रानी लक्ष्मी बाई केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी ने बताया की हमारा देश 342 मिलियन टन औद्योनिक उत्पादन के साथ चीन के बाद दूसरे स्थान पर है जिसमें सब्जियों का उत्पादन 60 प्रतिशत है। किसानों को आह्वान किया की अपने फसल चक्र में सब्जियों का समावेश कर अपनी आय दुगुना करें। डा. ए.के. सिंह, उप महानिदेशक (उद्यान विज्ञान), भारतीय कृषि अनुसंघान परिषद, नई दिल्ली ने अतिथियों का स्वागत करते हुए भारत में सब्जी उत्पादन बढ़ाने में भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी की सराहना की। उन्होने बताया विगत 50 वर्षों में अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) के द्रारा 500 से अधिक किस्में तथा 400 से अधिक सब्जी उत्पादन की तकनीकें विकसित की गयी है। इस अवसर पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) से जुड़े वैज्ञानिकों डा. कीर्ति सिंह, डा. विष्णु स्वरूप, डा. गौतम कल्लू को सम्मानित किया गया। संस्थान के निदेशक डा. तुषार कांति बेहेरा ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन करते हुये किसानों की आवश्यकता के अनुरूप शोध करने का आश्वासन दिया। इस अवसर पर तकनीकी सत्र आयोजित किये गये। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् से जुड़े विभिन्न संस्थानों, राज्य विश्वविद्यालयों, निजी कम्पनियों से सम्बन्धित से 200 से अधिक वैज्ञानिक, छात्र एवं 300 से अधिक किसान सम्मिलित हुए।

 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) के स्वर्ण जयंती राष्ट्रीय संगोष्ठी का दूसरा दिन

 भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी  के दूसरे दिन प्रथम सत्र की अघ्यक्षता डा. प्रीतम कालिया,  सह-अध्यक्षता डा. एस. टिक्कू एवं संयोजन डा. राजेश कुमार द्वारा किया गया। इस सत्र में संस्थान के निदेशक डा. टी.के. बेहेरा ने अपने सम्बोधन में अखिल भारतीय सब्जी अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसल) के 50 वर्षों की उपलब्धियाँ एवं भविष्य की योजनाओ के उपर प्रकाश डालते हुए बताया कि वैश्विक स्तर पर भारत देश में सब्जियों का क्षेत्रफल 15.8 प्रतिशत एवं उत्पादन 13 प्रतिशत है। देश भिण्डी में प्रथम, टमाटर, आलू, बैंगन, पत्तागोभी, फूलगोभी में द्वितीय स्थान पर है। इस परियोजना की स्थापना 17 जुलाई, 1971 को की गयी। इस परियोजना के तहत जननद्रव्य संग्रहण, किस्मों का मूल्यांकन एवं विविधता का अध्ययन (8 शस्य क्षेत्रों के लिये), सब्जी उत्पादन तकनीकी, फसल सुरक्षा तकनीकी एवं बीज उत्पादन तकनीकी का विकाश एवं मूल्यांकन किया जाता है। परियोजना में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली के 11 संस्थान एवं 25 केन्द्रीय/राज्य कृषि विश्वविद्यालय केन्द्र है। परियोजना के पास 25785 जननद्रव्य उपलब्ध है जिनको समय-समय पर शोध कार्य हेतु छात्रों एवं वैज्ञानिकों को उपलब्ध कराया जाता हैं। अभी तक कुल 347 किस्में, 181 संकर, 59 प्रतिरोधी किस्में, 432 उत्पादन तकनीकी, 46 संरक्षित खेती तकनीकी, 150 बीज उत्पादन तकनीकी विकसित की गयी। संस्थान में जल भराव की प्रतिरोधी सब्जियों के विकास के लिए ग्राफ्टिंग तकनीकी द्वारा बैंगन के मूल वृंत्त पर टमाटर की शाखा का रोपण करके जलभराव प्रतिरोधी टमाटर विकसित की गयी है। टमाटर में सहारा देकर उत्पादन में वृद्धि कार्बनिक/जैविक खेती द्वारा रसायन मुक्त सब्जी उत्पादन सब्जी की फसलों में अन्र्तवर्तीय मसालें की खेती द्वारा कुल आय में वृद्धि एवं कीटों की प्रकोप में कमी का विकास किया गया। लौकी में बावर ट्रेनिंग करने पर उत्पादन 38 टन और बिना ट्रेनिंग के 24 टन प्रति हेक्टेयर प्राप्त हुआ। जनक बीज का उत्पादन विगत वर्षों में माँग से अधिक किया गया जबकि अंतिम दो वर्ष लगभग बराबर था। अभी तक अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) द्वारा 947 शोध पत्र, 56 किताबें, 79 चैप्टर, 232 लेख, 101 बुलेटिन  का प्रकाशन किया गया है। भविष्य की योजनाओं में राज्यवार सब्जी नक्शा, स्थानीय/क्षेत्रीय समस्याएं, उत्पादकता में वृद्धि, गुणवत्तायुक्त बीज की सुनिश्चित उपलब्धता, गुण विशेष किस्मों का विकास, जलवायु अनुकूल किस्मों का विकास, राज्य सरकार को जनक बीज लेकर प्रमाणित बीज बनाने के लिए प्रोत्साहन, सब्जी उत्पादन में निजी क्षेत्रों की सहभागिता पर जोर दिया गया। आज दूसरे दिन कुल 04 तकनीकी सत्र आयोजित किए गए जिसमें मुख्य रूप से परियोजना में निजी क्षेत्र की भागीदारी, टमाटर में जड़़ क्षेत्र का महत्व, फ्राशबीन में रोग नियत्रण, मिर्च में उन्नतशील किस्मों का विकास, भिण्डी में विषाणु रोग नियंत्रण, उच्च तापमान पर विषाणु रोग सहनशीलता, मिर्च में जैव विविधिता, खीरा में डाउनी मिल्ड्यू का नियंत्रण एवं लोबिया में उच्च ताप सहनशील किस्मों के विकास पर व्याख्यान दिया गया।

 अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (सब्जी फसलें) के स्वर्ण जयंती राष्ट्रीय संगोष्ठी का तीसरा दिन एवं समापन

 भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थान, वाराणसी में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तीसरे दिन प्रथम सत्र की अघ्यक्षता डा. संजय सिंह, निदेशक, भारतीय बीज विज्ञान संस्थान, मऊ,  सह-अध्यक्षता डा. प्रभाकर मोहन सिंह एवं संयोजन डा. राजेश कुमार द्वारा किया गया। इस सत्र में अघ्यक्ष ने अपने सम्बोधन में बताया कि देश में 15 मुख्य सस्य क्षेत्रों एवं 20 पारिस्थितिकी क्षेत्रों के लिए जनक बीज की मांग में बीज उद्योगों के नवाचार की आवश्यकता पर बल दिया। देश में संकर की मांग बढ़ रही है जो आय बढ़ाने में सहायक है। देश में 700 बीज कंपनियां काम कर रही है जिनके सामने मुख्य बाध्यताएँ संकर बीज का अधिक मूल्य, समय से उपलब्धता एवं गुणवत्ता का आश्वासन है। इसके अलावा मुख्य चुनौतियाँ जलवायु परिवर्तन एवं नकली बीज का व्यावसायीकरण है। देश से अफ्रीका एवं एशिया के देशों को बीज निर्यात के बहुत अवसर है, जिसका लाभ बीज उद्योग उढ़ा सकता है। प्रो. प्रदीप श्रीवास्तव, कार्यकारी निदेशक, टीआईएफएसी, डीएसटी, न्यू दिल्ली ने बताया की कृषि में रूपांतरण की आवश्यकता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के अनुमान के अनुसार 2050 में विश्व की जनसंख्या 9.7 बिलियन हो जाएगी जबकि कृषि योग्य भूमि 4 प्रतिशत बढ़ेगी जिससे कृषि योग्य भूमि पर दबाव बढ़ेगा। देश में 54.6 प्रतिशत लोग सीधे कृषि से जुड़ें है। जिनकी आय बढ़ाने में आर्टफिशल इन्टेलिजन्स जैसे सर्च इंजन, नेटफलिक्स, यूट्यूब, सेल्फ ड्रिवन वीइकल, ऑटो लैंग्वेज ट्रांसलेटर और फेसीयल रेकॉगनीशन बहुत सहायक हो सकता है। इस सत्र में कुल 5 व्याख्यान जैसे फूलगोभी के संकर बीज उत्पादन में कोशिकाद्रव्यी बंध्यता का उपयोग, कद्दू का बीज उत्पादन, खीरा का बीज अंकुरण बढ़ाने के लिए सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग, मूली का उच्च ताप सहनशील संकर बीज उत्पादन एवं जल भराव सहनशीलता के लिए बैंगन रूट स्टॉक पर टमाटर के तने की ग्राफटींग एवं अधिक उत्पादन के लिए आलू के रूट स्टॉक पर टमाटर के तने की  ग्राफटींग तकनीकी का प्रयोग। प्लेनरी सेशन की अघ्यक्षता डॉ बी एस धनखड़, सह अघ्यक्षता  डॉ टी के बेहेरा एवं संयोजन डॉ प्रभाकर मोहन सिंह द्वारा किया गया। प्रभाकर मोहन सिंह द्वारा विभिन्न सत्रों की संस्तुतियों के बारे में विस्तार से बताया गया। संगोष्ठी के दौरान मंथन से निकली कुछ संस्तुतियाँ इस प्रकार रहीं – आई.ओ.टी.; ए.आई., ड्रोन तकनीकी आदि का प्रयोग करके क्लाइमेट स्मार्ट बागवानी विधियों का विकास, अधिक तापमान सहिष्णु किस्मों का विकास, दियारा क्षेत्रों हेतु तकनीकों का विकास, विकसित तकनीकों के प्रभाव का आकलन, राज्यवार /सब्जीवार मानचित्रों का विकास, परंपरागत सब्जी प्रजनन विधियों का नवीनतम तकनीकों के सामंजस्य में प्रयोग, एग्रो-इकोसिस्टम विश्लेषण आधारित समेकित पीड़क प्रबंधन, पौध आधारित पीड़कनाशियों का विकास एवं संवर्धन, तुड़ाई उपरांत प्रबंधन शृंखला का सुदृढ़ीकरण आदि। डॉ टी के बेहेरा ने इस गोष्ठी में आयोजित सत्रों की संस्तुतियों को सब्जियों से संबंधित सभी संस्थानों एवं विश्वविद्यालयों को भेजने का अनुरोध किया, जिससे भविष्य में वैज्ञानिक अपने शोध में इसे शामिल कर सब्जियों के उत्पादन एवं गुणवत्ता में वृद्धि कर किसानों की आय दुगुना करने में सहायक हो सकते है। इस अवसर पर विभिन्न सत्रों के पोस्टर का पुरस्कार अघ्यक्ष डॉ धनखड़ के कर कमलों द्वारा प्रदान किया गया। धन्यवाद ज्ञापन संस्थान के प्रधान वैज्ञानिक एवं संगोष्ठी के आयोजन सचिव डॉ राजेश कुमार द्वारा दिया गया।